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Kavita Kosh से
बोले --'भड़क रही लौ मन की
फूँकूँ फिर लंका रावण की
जी करता है , माता!
'कहाँ छिपे थे ये राक्षस तब!
रजक डूबा दूँ सरजू में सब
माँ, ! तेरा अपमान और अब
मुझसे सहा न जाता'