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मैं सुख-दुख में सम रह जाता
किन्तु ध्यान जब उसका आता
चुपके से रो लेता
 
'साथ रुक्मिणी के भी रहकर
उसे न भूल सका मैं पल भर
आता हूँ नित यमुना तट पर
मन की नौका खेता'
कोई राधा से कह देता
उसके लिये विकल है अब भी गीता-शास्त्र-प्रणेता
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