भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatGhazal}}
<Poem>
अपने हर कौल <ref> कथन </ref> से, वादे से पलट जाएगा
जब वो पहुंचेगा बुलंदी पे तो घट जाएगा
अपने किरदार को तू इतना भी मशकूक <ref> जिस पर शक हो </ref>न कर
वर्ना कंकर की तरह से दाल से छट जाएगा
जिसकी पेशानी <ref>माथा,ललाट</ref>तकद्दुस <ref>पाकीज़गी</ref> का पता देती है
जाने कब उस के ख्यालों से कपट जाएगा
उसके बढ़ते हुए क़दमों पे कोई तन्ज़ न कर
सरफिरा है वो, उसी वक़्त पलट जाएगा
क्या ज़रूरी है के ताने रहो तलवार सदा
आसमानों से परे यूँ तो है वुसअत उसकी
तुम बुलाओगे तो कूजे में सिमट जाएगा
</poem>
{{KKMeaning}}