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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
}}
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अपना चेहरा उठाए
खडे हैं हम बारहा
मुकाबिल आपके

अब आंखें हैं
पर द़ष्टि नहीं है

मन हैं
पर उसकी उडान
की बोर्ड से कंपूटर स्‍क्रीन तक है

काम कम है हमारे पास
और उपलब्धियां हैं बेशुमार

जहालत और पीडा से भरे
इस जहान में
अपना चेहरा लिए
खडे हैं हम

सबसे असंपृक्‍त

पहले आप
पहले आप की संस्‍क़ति
संभालते हुए
</poem>