भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} <poem> बिना नाव के माझी म…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
बिना नाव के माझी मिलते
मुझको नदी किनारे
कितनी राह कटेगी चलकर
उनके संग सहारे!
इनके-उनके ताने सुनना
दिन-भर देह गलाना
बंधा रुपैया मजदूरी का
नौ की आग बुझाना
अपनी-अपनी ढपली सबकी
सबके अलग शिकारे!
बढ़ती जाती रोज उधारी
ले-दे काम चलाना
रोज-रोज झोपड़ पर अपने
नए तगादे आना
अपनी-अपनी घातों में सब
किसको कौन उबारे!
पानी-पानी भरा पड़ा है
प्यासा मन क्या बोले
किसकी प्यास मिटी है कितनी
केवल बातें घोले
अपनी आँखों में सपने हैं
उनकी में सुख सारे!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
बिना नाव के माझी मिलते
मुझको नदी किनारे
कितनी राह कटेगी चलकर
उनके संग सहारे!
इनके-उनके ताने सुनना
दिन-भर देह गलाना
बंधा रुपैया मजदूरी का
नौ की आग बुझाना
अपनी-अपनी ढपली सबकी
सबके अलग शिकारे!
बढ़ती जाती रोज उधारी
ले-दे काम चलाना
रोज-रोज झोपड़ पर अपने
नए तगादे आना
अपनी-अपनी घातों में सब
किसको कौन उबारे!
पानी-पानी भरा पड़ा है
प्यासा मन क्या बोले
किसकी प्यास मिटी है कितनी
केवल बातें घोले
अपनी आँखों में सपने हैं
उनकी में सुख सारे!
</poem>