भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} <poem> दांव लगा कपटी शकुन…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
दांव लगा कपटी शकुनी से
हार वरूं मैं कब तक ?
विपरीत तटों का हरकारा-
सेतु बनूँ मैं कब तक?
इनका-उनका बोझा-बस्ता
पीठ धरूँ मैं कब तक?
बड़े-बड़े जालिम पिंडों की
चोट सहूँ मैं कब तक?
पाँव फंसाए गहरे पानी
खड़ा रहूँ मैं कब तक ?
नीली होकर उधड़ी चमड़ी
धार गहूँ मैं कब तक?
कोई तो बतलाये आकर
यहाँ रहूँ मैं कब तक?
रोवां-रोवां हाड़ कंपाती
शीत सहूँ मैं कब तक?
बिजली, ओलों, बारिश वाली
रात सहूँ मैं कब तक?
बहुत हुआ अब और न होगा
धीर धरूँ मैं कब तक?
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
दांव लगा कपटी शकुनी से
हार वरूं मैं कब तक ?
विपरीत तटों का हरकारा-
सेतु बनूँ मैं कब तक?
इनका-उनका बोझा-बस्ता
पीठ धरूँ मैं कब तक?
बड़े-बड़े जालिम पिंडों की
चोट सहूँ मैं कब तक?
पाँव फंसाए गहरे पानी
खड़ा रहूँ मैं कब तक ?
नीली होकर उधड़ी चमड़ी
धार गहूँ मैं कब तक?
कोई तो बतलाये आकर
यहाँ रहूँ मैं कब तक?
रोवां-रोवां हाड़ कंपाती
शीत सहूँ मैं कब तक?
बिजली, ओलों, बारिश वाली
रात सहूँ मैं कब तक?
बहुत हुआ अब और न होगा
धीर धरूँ मैं कब तक?
</poem>