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Kavita Kosh से
फूलेगा तू
और एक ही दिन में
पचास वर्शःओं वर्षों की कमी छू लेगा
कभी यहाँ
कभी वहाँ
मौसम के झूले पे झूलेगा
बातों की सिक्कड़ में बंधीबँधी
तेरी आत्मा
चोर दरवाज़ों से साँस लेगी