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करवा चौथ{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी}}{{KKCatKavita}}<br /poem>करवा चौथबदलता संसार<br />बदलता व्यवहार<br />बदलते सरोकार<br />बदलते संस्कार<br />बदलते लोग<br />बदलते योग<br />बदलते समीकरण<br />बदलते अनुकरण<br /><br />बदलता सब कुछ<br />पर नहीं बदलता <br />नारी का सुहाग के प्रति समर्पण<br />साल दर साल निभाती है वो रिवाज<br />जिसे करवा चौथ के नाम से <br />जानता है सारा समाज<br /><br />इस बाबत<br /> बहुत कुछ शब्दों में<br />बहुत कुछ कहने से अच्छा होगा<br />हम समझें - स्वीकारें <br />उस के अस्तित्व को<br />उस के नारित्व को<br />उस के खुद के सरोकारों को<br />उस के गिर्द घिरी दीवारों को<br /><br />जिस के बिना<br />इस दुनिया की कल्पना ही व्यर्थ है <br />दे कर भी <br />क्या देंगे <br />हम उसे <br /><br />हे ईश्वर हमें इतना तो समर्थ कर<br />कि हम <br />दे सकें <br />उसे <br />उस के हिस्से की ज़मीन<br />उस के हिस्से की अनुभूतियाँ<br />उस के हिस्से की साँसें<br />उस के हिस्से की सोच<br />उस के हिस्से की अभिव्यक्ति<br />आसक्ति से कहीं आगे बढ़ कर......................<br /><poem>{{KKCatKavita}}</poem>