भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
विश्व के प्रांगण में घहराए,<br /><br />
नाश! नाश!! हा महानाश!!! की<br /><br />
प्रलयंकारी आँख खुल जाए,<br />
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ<br />