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छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे
 
कोई तो समझाता !
तब वन में था बल स्वामी का
 
सिर पर था न अयश का टीका
 
अब तो छूट रहा भगिनी का
  इस घर से ही नाता!
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