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15:06, 12 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
जाग उठे हैं सपने क्या क्या, अय हय हय
उसने मेरी जानिब देखा, अय हय हय
कर देना तुम माफ़ न दिल क़ाबू में था
तुमको देखा मुँह से निकला अय हय हय
मैं था, वो थे और सुहाना मौसम था
यारो पिछली रात का सपना, अय हय हय
झूठी तारीफ़ों से हम क्या बहलेंगे
अपने पास ही रखिए अपना, अय हय हय
जीवन है इक नज़्म दुखों की, दर्दों की
हाँ लेकिन उन्वान है इसका, अय हय हय
शेर ‘अकेला’ के अच्छे हैं या तुमने
यूँ ही मन रखने को बोला, अय हय हय </poem>
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