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Kavita Kosh से
लफ़्ज़ों की आत्मा में , उतरता नहीं कोई
विपदा तू अपनी,अपने ही ,घर में सूना सुना के देख
खुशबू को कैसे ले उड़ा झोंका हवा का दोस्त