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{{KKRachna
|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
}}
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यूं मुस्करा तुम मिले इतने दिनों के बाद
आएं हैं दिन बहार के इतने दिनों के बाद
शौहरत कि चाह लोगों को उर्यां थी कर गई
लेकिन वो राज़ अब खुले इतने दिनों के बाद
सहरा में क्या जमाल है चंदन के पेड़ पर
शाखों पे फ़ूल हैं खिले इतने दिनों के बाद
चंचल हवाएं शोख-सी पानी पे तिर गईं
थे दो किनारे यूं मिले इतने दिनों के बाद
"आज़र" तमाम रात मैं सोया हूं चैन से
सपने सुहाने आए थे इतने दिनों के बाद
<poem>
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|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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यूं मुस्करा तुम मिले इतने दिनों के बाद
आएं हैं दिन बहार के इतने दिनों के बाद
शौहरत कि चाह लोगों को उर्यां थी कर गई
लेकिन वो राज़ अब खुले इतने दिनों के बाद
सहरा में क्या जमाल है चंदन के पेड़ पर
शाखों पे फ़ूल हैं खिले इतने दिनों के बाद
चंचल हवाएं शोख-सी पानी पे तिर गईं
थे दो किनारे यूं मिले इतने दिनों के बाद
"आज़र" तमाम रात मैं सोया हूं चैन से
सपने सुहाने आए थे इतने दिनों के बाद
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