भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निश्तर ख़ानक़ाही |संग्रह= }} [[Category:ग़ज़ल]] <poem> अपने …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निश्तर ख़ानक़ाही
|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
अपने ही खेत की मिट्टी से जुदा हूँ मैं तो ।
इक शरारा हूँ कि पत्थर से उगा हूँ मैं तो ।

मेरा क्या है कोई देखे या न देखे, मुझको
सुब्ह के डूबते तारों की ज़िया<ref>रोशनी</ref> हूँ मैं तो ।

अब ये सूरज मुझे सोने नहीं देगा शायद
सिर्फ़ इक रात की लज़्ज़त का सिला हूँ मैं तो ।

वो जो शोलों से जले उनका मदावा<ref>दवा से इलाज किया हो जिसका</ref> है यहाँ
मेरा क्या ज़िक्र कि पानी से जला हूँ मैं तो ।

कौन रोकगा तुझे दिन की दहकती हुई धूप
बर्फ़ के ढेर पे चुपचाप खड़ा हूँ मैं तो ।

लाख मुहमल<ref>व्यर्थ, बेकार</ref> सही पर कैसे मिटाएगी मुझे
ज़िन्दगी तेरे मुक़द्दर का लिखा हूँ मैं तो ।
</poem>
{{KKMeaning}}