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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
किसको-किसको लेके जायेगा ख़ुशी के गाँव में
खलबली किसने मचा दी ज़िन्दगी के गाँव में
घोर अंधियारों का जंगल छोड़कर जाऊँ कहाँ
है बड़ा ही सख़्त पहरा रोशनी के गाँव में
तू सचाई पर अडिग है, ठीक है, पर ये बता
एक अंगारा करेगा क्या नमी के गाँव में
मद्य-उन्मूलन सभा का वो सभापति बन गया
रोज़ करता है तमाशा जो कि पी के गाँव में
सामने होता नहीं गर रोज़ी-रोटी का सवाल
छोड़ कर ये शहर बस जाते कभी के गाँव में
दर्द से सीना फटा जाता है हँसना है मगर
क्या करें हम फंस गये हैं दिल्लगी के गाँव में
हम फ़क़ीरों का नहीं कोई जहाँ में गाँव-घर
अपनापन पाया जहाँ ठहरे उसी के गाँव में
<poem>
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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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किसको-किसको लेके जायेगा ख़ुशी के गाँव में
खलबली किसने मचा दी ज़िन्दगी के गाँव में
घोर अंधियारों का जंगल छोड़कर जाऊँ कहाँ
है बड़ा ही सख़्त पहरा रोशनी के गाँव में
तू सचाई पर अडिग है, ठीक है, पर ये बता
एक अंगारा करेगा क्या नमी के गाँव में
मद्य-उन्मूलन सभा का वो सभापति बन गया
रोज़ करता है तमाशा जो कि पी के गाँव में
सामने होता नहीं गर रोज़ी-रोटी का सवाल
छोड़ कर ये शहर बस जाते कभी के गाँव में
दर्द से सीना फटा जाता है हँसना है मगर
क्या करें हम फंस गये हैं दिल्लगी के गाँव में
हम फ़क़ीरों का नहीं कोई जहाँ में गाँव-घर
अपनापन पाया जहाँ ठहरे उसी के गाँव में
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