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23:14, 6 अक्टूबर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>हजारों-हजार
गुजरते हैं
गली में से
किसी का
पता भी नहीं चलता
एक वह है
जब भी गुजरता है
गंधा देता है
सारी गली
धुएं और धूल से</poem>
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