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|रचनाकार=सांवर दइया
|संग्रह=आ सदी मिजळी मरै / सांवर दइया
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<poem>तपतै धोरां तड़ाछ खा’र पड्यो हिरण देखो
देखो, देखो गौर सूं थे म्हारो मरण देखो

घर में पग धरतां ई लाव-लाव री रट लागै
छाती माथै पड़ै जाणै सैकडूं घण देखो

कोई कारी कोनी लागै अब आं सांसां रै
फूंफावै दिन अजगर : डसै रात नागण देखो

खाली ऐ गाभा ई नीं लीर-लीर हूं म्हैं खुद
आज कोनी लाधै तीन लोक में शरण देखो

बै कैवै म्हैं सूरज लाया, पण कींकर मानां
घर-गळी-गवाड़ कोनी उजास री किरण देखो</poem>
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