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हिचकी / विमलेश त्रिपाठी

14 bytes added, 16:55, 4 नवम्बर 2011
कोई याद कर रहा होता है
बचपन में दादी कहती थीं
 
आज रात के बारह बजे कौन हो सकता है
जो याद करे इतना कि यह
रूकने का नाम नहीं लेती
 
मन के पंख फड़फड़ाते हैं उड़ते सरपट
और थक कर लौट आते वहीं
जहाँ वह उठ रही लगातार
 
कौन हो सकता है
 
साथ में बिस्तर पर पत्नी सो रही बेसुध
बच्चा उसकी छाती को पृथ्वी की तरह थामे हुए
साथ रहने वाले याद तो नहीं कर सकते
 
पिता ने मान लिया निकम्मा-नास्तिक
नहीं चल सका उनके पुरखों के पद-चिन्हों पर
सुनाया मैंने अपना निर्णय
जार-जार रोईं घर की दीवारें
 
लोग जिनकी ओट में सदियों से रहते आए थे
कि जिन्हें अपना होना कहते थे
जो मेरी नज़र में मनुष्यता का इतिहास था
और मुझे बनाता था उनसे अधिक मनुष्य
 
इस निर्मम समय में बचा सका अपने हृदय का सच
वही किया जो दादी की कहानियों का नायक करता था
अन्तर यही कि वह जीत जाता था अन्ततः
और मैं हारता और अकेला होता जाता रहा
 
ऐसे में याद नहीं आता कोई चेहरा
जो शिद्दत से याद कर रहा हो
इतनी बेसब्री से कि रूक ही नहीं रही यह हिचकी
 
समय की आपा-धापी में मिला
कितने-कितने लोगों से
उन्हीं की बदौलत चल सका बीहड़ रास्तों
कंटीली पगडंडियों-तीखे पहाड़ों पर
 
हो सकता है याद कर रहा हो
किसी मोड़ पर बिछड़ गया कोई मुसाफ़िर
जिसमें एक बूढ़ी औरत की सिसकी शामिल थी
एक बूढ़े की आँखों का पथराया-सा इन्तज़ार शामिल था
 
यह भी हो सकता है
आम मंजरा गए हों- फल गए हों टिकोल
कोई तान याद कर रही हो बेतरह
बारह बजे रात के एकान्त में
 
कहीं ऐसा तो नहीं कि दुःसमय के ख़िलाफ़
बन रहा हो सुदूर कहीं आदमी के पक्ष में
कोई एक गुप्त संगठन
और वहाँ एक आदमी की सख़्त ज़रूरत हो
 
नहीं तो क्या कारण है कि रात के बारह बजे
जब सो रही पूरी कायनात
और यह हिचकी है कि
रूकने का नाम नहीं लेती
 
कहीं-न-कहीं किसी को तो ज़रूरत है मेरी ।
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