भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता अग्रवाल |संग्रह= }} <poem> दाना ले...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनीता अग्रवाल
|संग्रह=
}}
<poem>
दाना लेकर दीवार पर
चढ़ती हुई चोटीं
गिर जाती है
और कुचली जाती है
दाना
पांच से चिपककर
दूर जा गिरता है
एक दूसरी चींटी आकर
अहसास कराती है,
अपने होने का
जो साथी चींटी को ले जाती है
बिना किसी गिला-शिकवा के
और
मैं देखती रह जाती हूं
मुश्किल से उठाकर
लाये उस दाने को
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अनीता अग्रवाल
|संग्रह=
}}
<poem>
दाना लेकर दीवार पर
चढ़ती हुई चोटीं
गिर जाती है
और कुचली जाती है
दाना
पांच से चिपककर
दूर जा गिरता है
एक दूसरी चींटी आकर
अहसास कराती है,
अपने होने का
जो साथी चींटी को ले जाती है
बिना किसी गिला-शिकवा के
और
मैं देखती रह जाती हूं
मुश्किल से उठाकर
लाये उस दाने को
</poem>