भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
खेल खेलता है मृत्यु के साथ
खेल खेलती है
ईश्वर के साथ मृत्यु भी
सौंप कर मुझे मृत्यु को
बचाता है ख़ुद को
ईश्वर को मार देती है
मार कर मृत्यु मुझ को
कभी ईश्वर होता हूँ
मृत्यु कभी उस की—