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गहरे तहखाने / अर्जुनदेव चारण
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07:21, 1 दिसम्बर 2011
<poem>
कलेजा ठंडा करने
ईश्वर
को
तुम्हारा
किसने देखा
बहाता है वह आसूं
कभी रोते हुए
लोग उसे पहचानते हैं
शायद इसीलिये
कहते हैं मेह
तुमने
बाबुल इसी तरह
कभी नहीं भरी हिचकी
बरसाया करता है
अपना नेह।
क्या गहरे तहखाने
हम लोग
इसी खातिर बनाते हैं मां ?
</Poem>
आशिष पुरोहित
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