823 bytes added,
17:48, 20 सितम्बर 2007 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वेणु गोपाल
|संग्रह=चट्टानों का जलगीत/ वेणु गोपाल
}}
पाँच जोड़ बाँसुरी
बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी
पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी
वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो र्हा
मन उठ चलने को हो रहा
धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन
आधे अँचरा पर पिय सो रहा
मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader