{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=भारत भूषण }}{{KKCatGeet}}<poem>चक्की पर गेँहू लिए खड़ा मै सोच रहा उखड़ा उखड़ाक्यों दो पाटों वाली साखी बाबा कबीर को रुला गई ।गई।
लेखनी मिली थी गीतव्रता प्रार्थना- पत्र लिखते बीती
जर्जर उदासियों के कपड़े थक गई हँसी सीती- सीती
हर चाह देर में सोकर भी दिन से पहले कुलमुला गई।
कन्धों पर चढ़ अगली पीढ़ी ज़िद करती है गुब्बारों की
गीतों की जन्म-कुंडली में संभावित थी ये अनहोनी
मोमिया मूर्ति को पैदल ही मरुथल की दोपहरी ढोनी
खंडित भी जाना पड़ा वहाँ जिन्दगी जहाँ भी बुला गई।</poem>