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18:28, 1 जनवरी 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= शिवदीन राम जोशी
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<poem>
राम का घर है कितनी दूर।
मारग जटिल पार नहीं पावूं।
कदम कदम पे ठोकर खावूं।
हो गया दम काफूर।। राम....
जो हमको कोउ राम मिलादे।
उनके घर की राह बतादे।
वही गुण में भरपूर।। राम...
मन मेरा उन्हीं से लागे।
विरहनि जैसे निशि दिन जागे।
चित्त रहे चरण में चूर।। राम...
संत सनेही सांचे अपने।
शिवदीन देख अनुभव के सपने।
वह घर है मशहूर।। राम....
<poem>