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|रचनाकार=जयकृष्ण राय तुषार
}}
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<poem>
यह सब कैसे हो जाता है ?
यह सब कैसे
हो जाता है ?
सिर्फ़ तुम्हारे होने भर से |
हम अच्छी
कविता लिखते हैं ,
दरपन में
सुन्दर दिखते हैं ,
मौसम अपना
राग बदलकर
गाता है अनछुए अधर से |
हरी गाछ पर
चिड़िया गाती ,
धूप -मखमली
घास सजाती ,
अनगिन रंग
खुशबुओं से भर
महक रहे हैं फूल इतर से |
रिश्ते -नाते
उत्सव -न्योते ,
तुमसे मघई -
पान -सरौते ,
पायल ,बिछिया
पाँव महावर
लटक रही करधनी कमर से |
हल्दी -अक्षत
खुली कलाई ,
पर्वत -झील
नदी ,अमराई ,
हम घंटों
बतियाते रहते
खुद से ,तुमसे और लहर से |
शोख हवाएं
वंशी -मादल ,
तुम घर -आंगन
बजती सांकल ,
खुल जाते हैं
राज दिलों के
आनाकानी, अगर -मगर से |
मेघदूत की
विरह वेदना ,
कालिदास की
सघन चेतना ,
एक उर्वशी
कुछ कहती है
सपनों में आकर दिनकर से |
</poem>
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|रचनाकार=जयकृष्ण राय तुषार
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यह सब कैसे हो जाता है ?
यह सब कैसे
हो जाता है ?
सिर्फ़ तुम्हारे होने भर से |
हम अच्छी
कविता लिखते हैं ,
दरपन में
सुन्दर दिखते हैं ,
मौसम अपना
राग बदलकर
गाता है अनछुए अधर से |
हरी गाछ पर
चिड़िया गाती ,
धूप -मखमली
घास सजाती ,
अनगिन रंग
खुशबुओं से भर
महक रहे हैं फूल इतर से |
रिश्ते -नाते
उत्सव -न्योते ,
तुमसे मघई -
पान -सरौते ,
पायल ,बिछिया
पाँव महावर
लटक रही करधनी कमर से |
हल्दी -अक्षत
खुली कलाई ,
पर्वत -झील
नदी ,अमराई ,
हम घंटों
बतियाते रहते
खुद से ,तुमसे और लहर से |
शोख हवाएं
वंशी -मादल ,
तुम घर -आंगन
बजती सांकल ,
खुल जाते हैं
राज दिलों के
आनाकानी, अगर -मगर से |
मेघदूत की
विरह वेदना ,
कालिदास की
सघन चेतना ,
एक उर्वशी
कुछ कहती है
सपनों में आकर दिनकर से |
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