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अनगढ़ मन/राणा प्रताप सिंह

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<poem>अनगढ़ मन सपनों की दुनिया
रोज सजाता है
ढोल मंजीरे झांझ पखावज
साज बजाता है

मिलता जब कोई प्यारा सा
अंधियारे में उजियारा सा
उस प्यारे संग पंख पसारे
असमान में हो भिनसारे
उड़ता जाता है

उलझा संबंधों का धागा
रिश्तों पर बैठा हो कागा
संवादों की डोर थामकर
ताना बाना खींच तानकर
सब सुलझाता है

कभी चपल चपला सा चहके
कभी अलस की साँझ में दहके
बह जाता जीवन धारा में
जैसे मांझी नाव नदी में
खेता जाता है

</poem>