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रसखान / परिचय

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|रचनाकार=रसखान
}}
'''[[रसखान ]]'''==जन्म=='''[[रसखान]]''' के जन्म के संबंध में विद्वानों में मतभेद पाया जाता है। अनेक विद्वानों ने इनका जन्म संवत् १६१५ ई. माना है और कुछ विद्वानों ने १६३० ई. माना है।  रसखान स्वयं बताते हैं कि गदर के कारण दिल्ली श्मशान बन चुकी थी, तब उसे छोड़कर वे ब्रज चले गये। ऐतिहासिक साक्ष्य के आधार पर पता चलता है कि उपर्युक्त गदर सन् १६१३ ई. में हुआ था। उनकी बात से ऐसा प्रतीक होता है कि वह गदर के समय व्यस्क थे और उनका जन्म गदर के पहले ही हुआ होगा।
रसखान स्वयं बताते हैं कि गदर के कारण [[दिल्ली]] श्मशान बन चुकी थी, तब उसे छोड़कर वे ब्रज चले गये। ऐतिहासिक साक्ष्य के आधार पर पता चलता है कि उपर्युक्त गदर सन् १६१३ ई. में हुआ था। उनकी बात से ऐसा प्रतीक होता है कि वह गदर के समय व्यस्क थे और उनका जन्म गदर के पहले ही हुआ होगा।
रसखान का जन्म संवत् १५९० ई. मानना अधिक समीचीन प्रतीत होता है। भावानी शंकर याज्ञिक ने भी यही माना है। अनेक तथ्यों के आधार पर उन्होंने अपने इस मत की पुष्टि भी की है। ऐतिहासिक ग्रंथों के आधार पर भी यही तथ्य सामने आता है। यह मानना अधिक प्रभावशाली प्रतीत होता है कि रसखान का जन्म १५९० ई. में हुआ होगा।
==जन्म स्थान :-==
रसखान के जन्म स्थान के विषय में अनेक विद्वानों ने अनेक मत प्रस्तुत किए हैं। कई तो रसखान के जन्म स्थान पिहानी अथवा दिल्ली को बताते हैं, किंतु यह कहा जाता है कि दिपाली शब्द का प्रयोग उनके काव्य में केवल एक बार ही मिलता है। जैसा कि पहले लिखा गया कि रसखान ने गदर के कारण दिल्ली को श्मशान बताया है। उसके बाद की जिंदगी उसकी मथुरा में गुजरी। शिवसिंह सरोज तथा हिंदी साहित्य के प्रथम इतिहास तथा ऐतिहासिक तथ्यों एवं अन्य पुष्ट प्रमाणों के आधार पर रसखान की जन्म- भूमि पिहानी जिला हरदोई माना जाए। पिहानी और बिलग्राम ऐसे जगह हैं, जहाँ हिंदी के बड़े- बड़े एवं उत्तम कोटि के मुसलमान कवि पैदा हुए।
==नाम एवं उपनाम==
 नाम एवं उपनाम :- जन्म- स्थान तथा जन्म काल की तरह रसखान के नाम एवं उपनाम के संबंध में भी अनेक मत प्रस्तुत किए गए हैं। [[हजारी प्रसाद द्विवेदी ]] जी ने अपनी पुस्तक में रसखान के दो नाम लिखे हैं:-- सैय्यद इब्राहिम और सुजान रसखान। जबकि सुजान रसखान की एक रचना का नाम है। हालांकि [[रसखान ]] का असली नाम '''सैयद इब्राहिम ''' था और "खान' उसकी उपाधि थी।
नवलगढ़ के राजकुमार संग्रामसिंह जी द्वारा प्राप्त रसखान के चित्र पर नागरी लिपि के साथ- साथ फारसी लिपि में भी एक स्थान पर "रसखान' तथा दूसरे स्थान पर "रसखाँ' ही लिखा पाया गया है। उपर्युक्त सबूतों के आधार पर कहा जा सकता है कि रसखान ने अपना नाम "रसखान' सिर्फ इसलिए रखा था कि वह कविता में इसका प्रयोग कर सके। फारसी कवियों की नाम चसिप्त में रखने की परंपरा का पालन करते हुए रसखान ने भी अपने नाम खाने के पहले "रस' लगाकर स्वयं को रस से भरे खान या रसीले खान की धारणा के साथ काव्य- रचना की। उनके जीवन में रस की कमी न थी। पहले लौकिक रस का आस्वादन करते रहे, फिर अलौकिक रस में लीन होकर काव्य रचना करने लगे। एक स्थान पर उनके काव्य में "रसखाँ' शब्द का प्रयोग भी मिलता है।
==बाल्यकाल तथा शिक्षा :-==
रसखान एक जागीरदार पिता के पुत्र थे। इसलिए इनका लालन पालन बड़े लाड़- प्यार से हुआ माना जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि उनके काव्य में किसी विशेष प्रकार की कटुता का सरासर अभाव पाया जाता है। एक संपन्न परिवार में पैदा होने के कारण उनकी शिक्षा अच्छी और उच्च कोटि की, की गई थी। उनकी यह विद्वत्ता उनके काव्य की साधिकार अभिव्यक्ति में जग जाहिर होते हैं। रसखान को फारसी हिंदी एवं संस्कृति का अच्छा ज्ञान था। फारसी में उन्होंने "श्रीमद्भागवत' का अनुवाद करके यह साबित कर दिया था। इसको देख कर इस बात का अभास होता है कि वह फारसी और हिंदी भाषाओं का अच्छा वक्ता होंगे।
=रसखान और उसकी काव्य का भाव एवं विषय :-==
सैय्यद इब्राहिम रसखान के काव्य के आधार भगवान श्रीकृष्ण हैं। रसखान ने उनकी ही लीलाओं का गान किया है। उनके पूरे काव्य- रचना में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति की गई है। इससे भी आगे बढ़ते हुए रसखान ने सुफिज्म ( तसव्वुफ ) को भी भगवान श्रीकृष्ण के माध्यम से ही प्रकट किया है। इससे यह कहा जा सकता है कि वे सामाजिक एवं आपसी सौहार्द के कितने हिमायती थे। उनके द्वारा अपनाए गए काव्य विषयों को तीन खण्डों में बाँटा गया है --
===कृष्ण- लीलाएँ :-===
लीला का सामान्य अर्थ खेल है। कृष्ण- लीला से मुराद कृष्ण ( प्रभु ) का खेल। इसी खेल को सृष्टि माना जाता है। सृजन एवं ध्वंस को व्यापकता के आधार पर सृष्टि कहा जाता है। कृष्ण- लीला और आनंदवाद एक- दूसरे से संबंधित है, जिसने लीला को पहचान लिया है, उसने आनंद धाम को पहुँच कर हरि लीला के दर्शन कर लिए। रसखान चुँकि प्रेम के स्वच्छंद गायक थे। इन लीलाओं में उन्होंने प्रेम की अभिव्यक्ति भगवान श्री कृष्ण को आधार मानकर की है।
===बाल- लीलाएँ :-===
रसखान ने कृष्ण के बाल- लीला संबंधी कुछ पदों की रचना की है, किंतु उनके पद कृष्ण के भक्त जनों के कंठहार बने हुए हैं। अधिकतर कृष्ण भक्त इन पदों को प्रायः गाया करते हैं --
===गोचरण- लीलाएँ :-===
कृष्ण- जी जब बड़ें होते हैं, वह ग्वालों के साथ गायें चराने वन जाने लगते है। कृष्ण जी की गोचरण की तमाम अदाओं पर गोपियाँ दिवानी होने लगती है। कृष्ण जी धीर सभी कालिंदी के तीर खड़े हो गउएँ चरा रहे हैं। गाएँ घेरने के बहाने गोपियों से आकर अड़ जाते हैं --
===चीर- हरण लीला :- ===
एक समै जमुना- जल में सब मज्जन हेत,<br>
===कुँजलीला :-===
वृंदावन की कुँजी में गोपियों का कृष्ण के साथ विहार काफी प्रसिद्ध रहा है। कुँजलीला का चित्रण रसखान रमणीयता के साथ किया है। वे लिखते हैं कि गोपियों को रास्ते में कृष्ण जी घेर लेते हैं। कृष्ण जी के रुप अच्छे होने के कारण बेचारी गोपियाँ घिर जाती है। कृष्ण जी कुँज से रंगीली मुस्कान के साथ बाहर होते हैं, उनका यह रुप देखकर गोपियों का घर से संबंध समाप्त हो जाता है, इन्हें आरज- लाज, बड़ाई का भी ध्यान नहीं रहता है --
===रास- लीला :-===
श्री कृष्ण जी की लीलाओं में रसलीला का आध्यात्मिक महत्व है। रासलीला मानसिक भावना के साथ- साथ लौकिक धरातल पर अनुकरणात्मक होकर दृश्य- लीला का रुप धारण कर लेती है। अतः इसके प्रभाव की परिधि अन्य लीलाओं की अपेक्षा अधिक व्यापक हो जाती है। "रास' शब्द का संसर्ग रहस्य शब्द से भी है, जो एकांत आनंद का सूचक है। रासलीला के स्वरुप का विचार प्राचीन काल से ही होता आया है। लीला के समस्त रुप भगवान की ही प्रतिपादन करते हैं। भागवत पुराण में रासलीला का विस्तार से विवेचन मिलता है।
===सूरदास :- ===
संग ब्रजनारि हरि रास कीन्हों।<br>
==पनघट लीला :-===
पनघट लीला संबंधी रसखान के केवल तीन ही पद पाए जाते हैं। जमुना पर जल लेने जा रहीं गोपियों को रास्ते में घेर कर, कृष्ण उमंग में भर आलिंगन करते हुए बहाने से मुख चूम लेते हैं। गोपियाँ लोक लाज को बचाने के लिए परेशान हो जाती है, उनके हृदय में कृष्ण सांवरी मूर्ति घर कर गई थी।
===दानलीला :-===
रसखान ने दानलीला से संबंधित दोहे बड़ी ही सुंदरता से कहे हैं :-
===होली- वर्णन :-===
कृष्ण भक्त कवियों की तरह रसखान ने भी कृष्ण जी की उल्लासमयी लीलाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। उन्होंने अपने पदों में कृष्ण को गोपियों के साथ होली खेलते हुए दिखाया गया है, जिनमें कृष्ण गोपियों को किंभगो देते हैं। गोपियाँ फाल्गुन के साथ कृष्ण के अवगुणों की चर्चा करते हुए कहती हैं कि कृष्ण ने होली खेल कर हम में काम- वासना जागृत कर दी हैं। पिचकारी तथा घमार से हमें किंभगो दिया है। इस तरह हमारा हार भी टूट गया है। रसखान अपने पद में कृष्ण को मर्यादा- हीन चित्रित किया है :-
==हरि शंकरी :-==
रसखान हरि और शंकर को अभिन्न मानते थे :--
==शिव- स्तुति :-==
रसखान के पदों में कृष्ण के अलावा कई और देवताओं का जिक्र मिलता है। शिव की सहज कृपालुता की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि उनकी कृपा दृष्टि संपूर्ण दुखों का नाश करने वाली है --
==गंगा- गरिमा :-==
गंगा की महिमा के वर्णन की परिपाटी का अनुसरण करते हुए रसखान ने भी गंगा की स्तूति में एक पद ही सही, मगर लिखा है --
==प्रेम तथा भक्ति :-==
प्रेम तथा भक्ति के क्षेत्र में भी रसखान ने प्रेम का विषद् और व्यापक चित्रण किया है। राधा और कृष्ण प्रेम- वाटिका के मासी मासिन हैं। प्रेम का मार्ग कमल तंतू के समान नागुक और अतिधार के समान कठिन है। अत्यंत सीधा भी है और टेढ़ा भी है। बिना प्रेमानुभूति के आनंद का अनुभव नहीं होता। बिना प्रेम का बीज हृदय में नहीं उपजता है। ज्ञान, कर्म, उपासना सब अहंकार के मूल हैं। बिना प्रेम के दृढ़ निश्चय नहीं होता। रसखान द्वारा प्रतिपादित प्रेम आदर्शों से अनुप्रेरित है।
===भक्ति :-===
ईश्वर के प्रति अनुराग को भक्ति कहते हैं। रसखान एक भक्त कवि हैं। उनका काव्य भक्ति भाव से भरपूर है।
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