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Kavita Kosh से
माँगे आग नहीं दी हमने
कभी पडोसी पड़ोंसी को,पूड़ी-पुआ खिलाया बैठा घर में बैठा दोषी को ।
बदले रोज मुखौटे झूठी
रोज़ रचे घर से बाहर तक
नये नये तिकडम तिकड़म ।
साथी से ले कर्ज़ नहीं फिर