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<Poem>
बन कर ध्वज हम
इस धरती के
अम्बर में फहराएँ
मेघा बन कर
जीवन जल दें
सागर-सा लहराएँ

टूटे-फूटे
बासन घर के
अपनी व्यथा सुनाते
सभी अधूरे सपने
मिल कर
अक्सर हमें रुलाते

पथ के कंटकवन को
आओ
मिल कर आज जराएँ

बाग़ लगाएं
फूल बनें हम
कोयल-सा कुछ गाएँ
भोर किरण का
रूप धरें हम
तम को दूर भगाएँ

चुन-चुन कर
अनुभव के मोती
जोड़ें सभी शिराएँ
</poem>
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