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|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
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<Poem>
तरह-तरह के स्वर दूतों से
संवादों की जुड़ी कड़ी
टेलीकॉम जोड़ता ग्राहक
अपने सस्ते प्लानों से
नये प्रलोभन देता रहता
अपनी मीठी तानों से
फसती रहती जनता भोली
सम्मोहित जब करे छड़ी
कुछ तो लाभ हुआ जनता का
जबसे टैरिफ वार हुआ
लेकिन सच है कंपनियों ने
हरदम लूटा माल-पुआ
ग्राफ बढ़ा है कंपनियों का
जबसे आ मैदान खडीं
खून- पसीना बनकर बहता
बटुआ दे हम बतियाते
नहीं आंकलन कर पाए हैं
हलके अपने क्यों खाते?
जगे हुए को कौन जगाये
जब हो औंधी पड़ी घड़ी!
</poem>