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Kavita Kosh से
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक छहरे
तोड़ सकूँ चट्टान चट्टानों को भी
गड़ी हुई जो गहरे
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा नव-दल दूँ
हर विपदा में-