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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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मनवा बेग विचारो रे |
दीनानाथ दयाल बिना अब कौन तिहारो रे |
मात पिता सुत सुख के साथी ना कोई रे |
भाई बन्धु सब ही स्वार्थ के यो जग को धरो रे |
अंत समय सब साथ छोड़ कर करें किनारों रे |
सुखिया साथी काम ना आवे वांको धरक जमारो रे |
काम क्रोध अरु लोभ मोह को पटक पछारो रे |
सुरता डोर एक कर, आपो सुधरे थारो रे |
भाव सुभाव सरल कर निर्मल चित्त चितारो रे |
शिवदीन राम की विनय बिहारी शीघ्र स्वीकारो रे |
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