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सुर-नर-मुनि कौतूहल भूले, देखत सूर सबै जु कहा रे ॥<br><br>
भावार्थ :-- (माता कहती हैं-) `मेरे प्यारे लाल ! पालनेमें पालने में झूलो । तुम्हारे इस (सिसकने रोने ) पर मैं बलिहारी जाती हूँ । बार-बार मैं तुम्हारी बलैयाँ लूँ, नन्दनन्दन ! तुम हठ मत करो । मोहन ! (नेत्रोंको नेत्रों को मलकर) हाथोंको काजलसे हाथों को काजल से मत भरो ।(मलनेसेमलने से) नेत्र अत्यन्त लाल हो जायँगे । मस्तकपर मस्तक पर टोपी और चरणों में नूपुर पहिनकरवहाँ पहिन कर वहाँ जाओ, जहाँ नन्दबाबा बैठे हैं ।' सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि जगत के धारणकर्ता प्रभुका प्रभु का यह विनोद माता यशोदा, बाबा नन्द और बड़े भाई बलरामजी बलराम जी देख रहे हैं । देवता, गन्धर्व तथा मुनिगण इस विनोद को देखकर भ्रमित हो गये । सभी देखते हैं कि प्रभु यह क्या लीला कर रहे हैं ।