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सूरज भष लैबे अप-अपनौ, मानहुँ लेत निबेरे सीर ॥<br><br>
भावार्थ :-- सबेरेके सबेरे के समय दोनों भाई खेल रहे हैं ! वे माखन माँग रहे हैं और मैया यशोदासे यशोदा से झगड़ रहे हैं, उसकी कोई दूसरी बात मान नहीं रहे हैं ! मैया बीचमें बीच में है, बलराम उसके आगे हैं और पीछेसे कन्हाईके खींचनेसे माताके मस्तककावस्त्र पीछे से कन्हाई के खींचने से माता के मस्तक का वस्त्र खिसक गया है । ऐसा लगता है मानो सरस्वतीके सरस्वती के संग बाल-हंस और मयूर-शिशु ये दोनों पक्षी क्रीड़ा करते हों । श्यामसुन्दरने माताकी श्यामसुन्दर ने माता की चोटी हाथों में पकड़ रखी है और बलरामजी मोतीकी बलराम जी मोती की माला पकड़कर खींच रहे हैं । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं किमानो कि मानो अपना-अपना आहार (सर्प और मोती) लेनेके लेने के लिये दोनों पक्षी (मयूर और हंस)अपने हिस्सेका हिस्से का बँटवारा किये लेते हों ।