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अकेला तू भी / वीरेन डंगवाल

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|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
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   <poem>
तू अभी अकेला है जो बात न ये समझे
 
हैं लोग करोड़ों इसी देश में तुझ जैसे
 
::धरती मिट्टी का ढेर नहीं है अबे गधे
 
::दाना पानी देती है वह कल्याणी है
 
::गुटरू-गूँ कबूतरों की, नारियल का जल
 
::पहिए की गति, कपास के हृदय का पानी है
 
तू यही सोचना शुरू करे तो बात बने
 
पीड़ा की कठिन अर्गला को तोड़ें कैसे !
</poem>
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