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नींद की कविता / मंगलेश डबराल

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|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
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नींद की अहमियत इस बात से ज़ाहिर है कि उसके बिना हम अपने
 
को जागा हुआ नहीं कह सकते । नींद का वर्णन करने के लिए पहाड़
 
समुद्र जंगल और रेगिस्तान जैसी चीज़ों का इस्तेमाल किया जाता है
 
पर तब भी नींद के रहस्य नहीं खुलते । आसानी के लिए हम कह
 
सकते हैं कि जहाँ कहीं छायाएँ दिखती हैं वे नींद की छायाएँ हैं । हमारी
 
अपनी छाया हमारी नींद के अलावा कुछ नहीं है ।
 
भूख से परेशान लोग अक्सर नींद से काम चलाते हैं । कोई अपने घोड़े
 
दौड़ाता हुआ उनके पास से गुज़र जाता है तब भी वे नहीं उठते । दूसरी
 
ओर कुछ लोग अनिद्रा की शिकायत करते नज़र आते हैं । नींद की
 
गोलियाँ उनके पेट में खिलखिलाती हैं। वे हमेशा दूसरों की नींद तोड़ने
 
की कोशिश में लगे रहते हैं । वह कहानी सभी को मालूम होगी कि
 
किस तरह एक सम्राट ने एक भूखे आदमी की नींद ख़राब करने के
 
लिए उसे अपने मख़मल के बिस्तर पर सुला दिया था ।
 
आधी रात किसी आहट से चौंककर हम उठ बैठते हैं । चारों ओर देखते
 
हैं । अंधेरा एक प्राचीन मुखौटे की तरह दिखता है । कोई है जो बार बार
 
हमारी नींद तोड़ता है । कोई सपना या कोई यथार्थ । शायद दंतकथाओं
 
से निकला हुआ कोई सम्राट । शायद दुनिया को बार बार ख़रीदता और
 
बेचता हुआ कोई आदमी जिसे नींद नहीं आती ।
 
(1990)
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