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बेटे पर तीन गीत / यश मालवीय

61 bytes removed, 09:58, 4 अगस्त 2012
<poem>
(1)
जन्म दिन जन्मदिन बेटे तुम्हारा!जन्मदिन बेटे तुम्हारा
साथ लाया नया सूरज
और बीता कल हमारा
आज पंद्रह साल पीछे
देर तक देखा निहारा
जन्मदिन बेटे तुम्हारा!
तुम दुधाइन गन्ध से गेहूँ हुए
कस रही -सी देह की ंखुशबू ख़ुशबू हुएभीगती -सी मसें चेहरे पर उगींटिमटिमाती ऑंख आँख में जुगनू हुएफिर पर हमारे ंखून ख़ून ने ही
हमें बिन बोले पुकारा
उठी गंगा की लहर -सी
झिलमिलाती भावधारा
जन्मदिन बेटे तुम्हारा
 
एक भाई घर कि इक बाहर खिला
पीढ़ियों तक रोशनी का सिलसिला
बहन चम्पा सी हँसी दालान में
क्यों न गहरा दुख उठे फिर तिलमिला
 
एक झोंका उठा पल भर
हुआ बरगद भी उधारा
मन हुआ फिर मिले हमको
ािंदगी ज़िन्दगी अपनी दुबारा
जन्म दिन बेटे तुम्हारा
माँ तुम्हारी खीर सी महकी फिरी
हुई दादी बीच हलुए के, गरी
लगी करने याद बाबा को ाराज़रामन भरा तो ऑंख आँख भी थोड़ी भरी नाव जैसे पा गयी गई फिरभंवर भँवर में खोया किनारासजी टोली की दुवाएंदुआएँ
टँका अक्षत का सितारा
जन्म दिन बेटे तुम्हारा
बहुत कुछ याद आता है
बहुत कुछ भूल जाता है
टिंफिन टिंफ़िन लेकर हमारा लाड़ला
स्कूल जाता है
हुँकारी भर रहा मौसम
कहानी याद होती है
दुवाएँ दुआएँ साथ देती हैंकि मन फल -फूल जाता है
तुम्हारी बोलियों में
भोर की चिड़िया चहकती है
पुरानी डायरी में
एक कविता -सी महकती है
लहर में नाव के सँग
गीत का मस्तूल जाता है
(3)
बेटे कैसे हो!
बहुत दिनों पर घर आए हो
बेटे कैसे हो?
चलने फिरने में, दिखने में
मेरे जैसे हो! 
मेरे बाद तुम्हें रहना है
दुनिया जीनी है
कड़ुवाहट पीनी है
आने वाला कल हो फिर भी
लगते तय से हो! 
राजपाट देखना,
समझना ािम्मेदारी ज़िम्मेदारी भी
आने लगीं समझ तुमको
हारी -बीमारी भी
देखो तो आइना, जान लो
कैसे, ऐसे हो! 
वैसे ही बोलते, बात करते
हँस देते हो
बात -बात पर वैसे ही
जुमले कस देते हो
मैं अब तक जैसा था
तुम भी बिल्कुल वैसे हो! 
अपनी आदत की मत पूछो
अचरज होता है
सूरज का वंशज भी आंखिर आख़िर
सूरा होता है
बँधी नोट से बँधे,
खुले तो फुटकर पैसे हो! 
दुखते हुए घाव,
यात्रा के किस्से क़िस्से कहते हैं
पाँव तुम्हारे अब मेरे
जूतों में रहते हैं
कहीं पराजय और कहीं
अपनी ही जय से हो! 
अलग तरह से जीने की
तरकीबें तरक़ीबें गुनते हो
सुख मिलता जब अपनी अलग
राह भी चुनते हो
बाकायदा बाक़ायदा ठसक से होकब जैसे तैसे हो!
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