भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है
मैं क़तरा होके हो के तूफानों से जंग लड़ता हूँ मुझे बचाना समंदर की जिम्मेदारी ज़िम्मेदारी है
कोई बताये ये उसके ग़ुरूर-ए-बेजाजा बेजा को
वो जंग हमने लड़ी ही नहीं जो हारी है