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परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है
मैं क़तरा होके हो के तूफानों से जंग लड़ता हूँ मुझे बचाना समंदर की जिम्मेदारी ज़िम्मेदारी है
कोई बताये ये उसके ग़ुरूर-ए-बेजाजा बेजा को
वो जंग हमने लड़ी ही नहीं जो हारी है