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14:18, 27 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
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<poem>
जिन आँखिन रूप-चिन्हार भई ,
तिनको नित ही दहि जागनिहै .
हित-पीरसों पूरित जो हियरा ,
फिरि ताहि कहाँ कहु लागनिहै .
‘घनआनन्द’ प्यारे सुजान सुनौ,
जियराहि सदा दुख दागनि है .
सुख में मुख चंद बिना निरखे,
नखते सिख लौं बिख पागनि है .
</poem>