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|रचनाकार=घनानंद
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जिन आँखिन रूप-चिन्हार भई ,
तिनको नित ही दहि जागनिहै .

हित-पीरसों पूरित जो हियरा ,
फिरि ताहि कहाँ कहु लागनिहै .

‘घनआनन्द’ प्यारे सुजान सुनौ,
जियराहि सदा दुख दागनि है .

सुख में मुख चंद बिना निरखे,
नखते सिख लौं बिख पागनि है .

</poem>
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