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Kavita Kosh से
१.
सियाह पेड़ हैं अब आप अपनी परछाईं
जमीं से ता१ ता महो-अंजुम सुकूत के मीनार
जिधर निगाह करे इक अथाह गुमशुदगी
एक-एक करके अफ़सुर्दा चिरागों की पलकें