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आत्मज्ञान / सूरदास

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ज्यौं सौरभ मृग-नाभि बसत है, द्रुम तृन सूँधि फिर्‌यौ ।
 
ज्यौं सपने मै रंक भूप भयौ, तसकर अरि पकर्‌यौ ।