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पूछती हैं बेटियाँ
बोलती हूँ मैं
और देने लगती हूँ चन्द्रमा को अर्ध्य
पूछती हैं बेटियाँ
बोलती हूँ मैं
और देने लगती हूँ तारों को अर्ध्य
पूछती हैं बेटियाँ
बोलती हूँ मैं
और काढ़ने लगती हूँ सकट देवता चकले पर गंगोटी से
पूछती हैं बेटियाँ
बोलती हूँ मैं
रोली और तिल के छींटे सकट देवता पर लगाते हुए
पूछती हैं बेटियाँ
मैं सिर उठाकर देखती हूँ बेटियों को भरपूर नजर
हम क्यों मानें धर्म को या शास्त्र को
जो हमें नहीं मानता...''
थप्पड़ मारने के लिए उठा मेरा हाथ
बीच में ही रुक गया है
लगता है बेटियों की जगह मैं खड़ी हूँ
और पूछ रही हूँ अपनी माँ से
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