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|रचनाकार= नामवर सिंह
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उनये उनये भादरे
 
बरखा की जल चादरें
 
फूल दीप से जले
 
कि झरती पुरवैया सी याद रे
 
मन कुयें के कोहरे सा रवि डूबे के बाद रे।
 
:::::::भादरे।
 
उठे बगूले घास में
 
चढ़ता रंग बतास में
 
हरी हो रही धूप
 
नशे सी चढ़ती झुके अकास में
 
तिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास में
 
:::::::घास में।
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