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हाँसी खैलो हरि मिलै, कौण सहै षरसान ।
काम क्रोध त्रिष्णं तजै, तोहि मिलै भगवान ॥ 264 ॥
जा कारणि में ढ़ूँढ़ती, सनमुख मिलिया आइ ।
धन मैली पिव ऊजला, लागि न सकौं पाइ ॥ 265 ॥