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|रचनाकार=राहत इन्दौरी
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तेरे वादे की तेरे प्यार की मोहताज नहीं
ये कहानी किसी किरदार की मोहताज नहीं(१)

खाली कशकोल पे इतराई हुई फिरती है
ये फकीरी किसी दस्तार की मोहताज नहीं(२)

लोग होठों पे सजाये हुए फिरते हैं मुझे
मेरी शोहरत किसी अखबार की मोहताज नहीं(३)

इसे तूफ़ान ही किनारे से लगा सकता है
मेरी कश्ती किसी पतवार की मोहताज नहीं(४)

मैंने मुल्कों की तरह लोगों के दिल जीते हैं
ये हुकूमत किसी तलवार की मोहताज नहीं(५)
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