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{{KKRachna
|रचनाकार=मलिक मोहम्मद जायसी
|अनुवादक=|संग्रह=पद्मावत / मलिक मोहम्मद जायसी}} <poem>सुमिरौं आदि एक करतारू । जेहि जिउ दीन्ह कीन्ह संसारू ॥कीन्हेसि प्रथम जोति परकासू । कीन्हेसि तेहि पिरीत कैलासू ॥कीन्हेसि अगिनि, पवन, जल खेहा । कीन्हेसि बहुतै रंग उरेहा ॥कीन्हेसि धरती, सरग, पतारू । कीन्हेसि बरन बरन औतारू ॥कीन्हेसि दिन, दिनअर, ससि, राती । कीन्हेसि नखत, तराइन-पाँती ॥कीन्हेसि धूप, सीउ औ छाँहा । कीन्हेसि मेघ, बीजु तेहिं माँहा ॥ कीन्हेसि सप्त मही बरम्हंडा । कीन्हेसि भुवन चौदहो खंडा ॥
कीन्हेसि सात समुन्द अपारा अगर कसतुरी बेना । कीन्हेसि मेरु, खिखिंद पहारा भीमसेन औ चीना ॥<br>कीन्हेसि नदी नारनाग, औ झरना जो मुख विष बसा । कीन्हेसि मगर मच्छ बहु बरना मंत्र, हरै जेहि डसा ॥<br>कीन्हेसि सीपअमृत , मोती जेहि भरे जियै जो पाए । कीन्हेसि बहुतै नग निरमरे बिक्ख, मीचु जेहि खाए ॥<br>कीन्हेसि बनखँढ औ जरि मूरी ऊख मीठ-रस-भरी । कीन्हेसि तरिवर तार खजूरी करू-बेल बहु फरी ॥<br>कीन्हेसि साउज आरन रहईं मधु लावै लै माखी । कीन्हेसि भौंर, पंखि उडहिं जहँ चहईं औ पाँखी ॥<br>कीन्हेसि बरन सेत ओ स्यामा लोबा इंदुर चाँटी । कीन्हेसि भूख नींद बिसरामा बहुत रहहिं खनि माटी ॥<br>कीन्हेसि पान फूल बहु भौगू राकस भूत परेता । कीन्हेसि बहु ओषद, बहु रोगू भोकस देव दएता ॥<br><br>
कीन्हेसि अगर कसतुरी बेना । कीन्हेसि भीमसेन औ चीना ॥<br>कीन्हेसि नागमानुष, जो मुख विष बसा दिहेसि बडाई । कीन्हेसि मंत्रअन्न, हरै जेहि डसा भुगुति तेहिं पाई ॥<br>कीन्हेसि अमृत , जियै जो पाए राजा भूँजहिं राजू । कीन्हेसि बिक्ख, मीचु जेहि खाए हस्ति घोर तेहि साजू ॥<br>कीन्हेसि ऊख मीठ-रस-भरी दरब गरब जेहि होई । कीन्हेसि करू-बेल बहु फरी लोभ, अघाइ न कोई ॥<br>कीन्हेसि मधु लावै लै माखी जियन , सदा सब चाहा । कीन्हेसि भौंरमीचु, पंखि औ पाँखी न कोई रहा ॥<br>कीन्हेसि लोबा इंदुर चाँटी सुख औ कोटि अनंदू । कीन्हेसि बहुत रहहिं खनि माटी दुख चिंता औ धंदू ॥<br>कीन्हेसि राकस भूत परेता कोइ भिखारि, कोइ धनी । कीन्हेसि भोकस देव दएता सँपति बिपति पुनि घनी ॥<br><br>
कीन्हेसि सहस अठारह बरन बरन उपराजि कोई निभरोसी, कीन्हेसि कोइ बरियार ।<br>भुगुति दुहेसि छारहिं तें सब कीन्हेसि, पुनि सबन कहँ सकल साजना साजि ॥3॥<br><br>कीन्हेसि सब छार ॥4॥
पुनि रूपवंत बखानौं काहा दातार दई जग कीन्हा । जावत जगत सबै मुख चाहा अस जग दान न काहू दीन्हा ॥<br>ससि चौदसि जो दई सँवारा बलि विक्रम दानी बड कहे । ताहू चाहि रूप उँजियारा हातिम करन तियागी अहे ॥<br>पाप जाइ जो दरसन दीसा सेरसाहि सरि पूज न कोऊ । जग जुहार कै देत असीसा समुद सुमेर भँडारी दोऊ ॥<br>जैस भानु जग ऊपर तपा दान डाँक बाजै दरबारा । सबै रूप ओहि आगे छपा कीरति गई समुंदर पारा ॥<br>अस भा कंचन परसि सूर पुरुष निरमरा जग भयऊ । सूर चाहि दस आगर करा दारिद भागि दिसंतर गयऊ ॥<br>सौंह दीठि कै हेरि न जाई जो कोइ जाइ एक बेर माँगा । जेहि देखा सो रहा सिर नाई जनम न भा पुनि भूखा नागा ॥<br>रूप सवाई दिन दिन चढा ।बिधि सुरूप जग ऊपर गढा दस असमेध जगत जेइ कीन्हा । दान-पुन्य-सरि सौंह न दीन्हा ॥<br><br>
गुरु मोहदी खेवक मै सेवा । चलै उताइल जेहिं कर खेवा ॥अगुवा भयउ सेख बुरहानू । पंथ लाइ मोहि दीन्ह गियानू ॥अहलदाद भल तेहि कर गुरू । दीन दुनी रोसन सुरखुरू ॥सैयद मुहमद तेइ निचिंत पथ कै वै चेला । सिद्द-पुरुष-संगम जेहि सग मुरसिद पीर खेला ॥दानियाल गुरु पंथ लखाए ।<br>हजरत ख्वाज खिजिर तेहि पाए ॥जेहिके नाव औ खेवक बेगि लागि सो तीर ॥19॥<br><br>भए प्रसन्न ओहि हजरत ख्वाजे । लिये मेरइ जहँ सैयद राजे ॥ओहि सेवत मैं पाई करनी । उघरी जीभ, प्रेम कवि बरनी ॥
वै सुगुरू, हौं चेला , नित बिनवौं भा चेर ।
उन्ह हुत देखै पायउँ दरस गोसाईं केर ॥20॥
मुहमद चारिउ मीत मिलि भए जो एकै चित्त कबि जौ बिरह भा ना तन रकत न माँसु ।<br>एहि जग साथ जो निबहाजेइ मुख देखा तेइ हसा, ओहि जग बिछुरन कित्त ?॥22॥<br><br>सुनि तेहि आयउ आँसु ॥23॥
(1) उरेहा = चित्रकारी । सीउ = शीत । कीन्हेसि...कैलासू = उसी ज्योति अर्थात् पैगंबर मुहम्मद की प्रीति के कारण स्वर्ग की सृष्टि की । (कुरान की आयत) कैलास - बिहिश्त, स्वर्ग । इस शब्द का प्रयोग जायसी ने बराबर इसी अर्थ में किया है ।
(2)खिखिंद = किष्किंधा । निरमरे = निर्मल । साउज = वे जानवर जिनका शिकार किया जाता है । आरन = आरण्य । बाज = बिना । जैसे दीन दुख दारिद दलै को कृपा बारिधि बाज
(3)बेना = खस । भीमसेन, चीना = कमूर के भेद । लीबा = लोमडी । इंदुर=चूहा । चाँटी=चींटी । भौकस=दानव । सहस अठारह=अठारह हजार प्रकार के जीव (इसलाम के अनुसार)
(4)भूँजहिं=भोगते हैं । बरियार=बलवान ।
(5) उपाई=उत्पन्न की । आस हर=निराश ।
(6) भाँजै=भंजन करता है, नष्ट करता है ।
(7) सिरजना=रचना ।
(8) बेहरा=अलग (बिहरना=फटना)।
(11) पूनौ करा=पूर्निमा की कला । प्रथम....उपराजी=कुरानमें लिखा है कि यह संसार मुहम्मद के लिये रचा गया, मुहम्मद न होते तो यह दुनिया न होती । जगत-बसीठ=संसार में ईश्वर का संदेसा लानेवाला , पैगंबर । लेख जोख=कर्मों का हिसाब । दुसरे ठाँव....वै लिखे = ईश्वर ने मुहम्मद को दूसरे स्थान पर लिखा अर्थात्अपने से दूसरा दरजा दिया । पाढत = पढंत, मंत्र, आयत । (12) सिदिक = सच्चा । दीन =धर्म, मत । बाना = रीति ,ढंग । संधान = खोज, उद्देश्य, लक्ष्य (13) छात = छत्र । पाट = सिंहासन । सूर =शेरशाह सूर जाति का पठान था ।जुलकरन = जुलकरनैन, सिकंदर की एक अरबी उपाधिकाँदौ = कर्दम, कीचड । (15) अहा = था । भई अहा = वाह वाह हुई । नाथ = नाक मेंपहनने की नथ । पारा = सकता है । निनारा = अलग 2(निर्णय)। (16)मुख चाहा = मुँह देखता है। आगर =अग्र, बढकर । चाहि = अपेक्षाकृत (बढकर) । करा = कला। ससि चौदसि=पूर्णिमा(मुसलमान प्रथम चंद्रदर्शन अर्थात द्वितीया से तिथि गिनते हैं, इससे पूर्णिमा को उनकी चौदहवीं तिथि पडती है ।) (17) डाँक = डंका । सौंह न दीन्हा = सामना न किया । (18) लेसा =जलाया । कंधार = कर्णधार, केवट । हाथी दीन्ह = हाथ दिया, बाँह का सहारा दिया । अँजोर = उजाला । खिखिंद = किष्किंध पर्वत ।
(19) खेवक = खेनेवाला, मल्लाह ।
(20) खेवा = नाव का बोझ । सुरखुरू = सुर्खरू, मुख पर तेज धारण करनेवाले । उताइल = जल्दी । मेरइ लिये = मिला लिया । सैयद राजे = सैयद राजे हामिदशाह । उन्ह हुत = उनके द्वारा । (21) नयनाहाँ = नयन से, आँख से । डाभ = आम के फल के मुँह पर का तीखा चेप ।चोपी । (22) मतिमाहाँ = मतिमान् । उभै = उठती है । जुझारू = योद्धा । चतुरदसा गुन =चौदह विद्याएँ । (23) बिनती भजा = बिनती की (करता हूँ)। टूट = त्रुटि, भूल । डगा = डुग्गी बजाने की लकडी । तारु = (क) तालू । (ख) ताला कूँजी = कुँजी । फेरे भेष = वेष बदलते हुए । तपा = तपस्वी । (24) आछै = है । जैसे - कह कबीर कछु अछिलो न जहिया ।</poem>