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Kavita Kosh से
या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो कि की बाँहों में बैठ कर
तेरे कैनवास पर बिछ जाउँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें कि की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी