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कैसा रिश्ता है इस मकान के साथ
बात करता हूं बेज़बान के साथ

आप तन्हा जनाब कुछ भी नहीं
तीर जचता है बस कमान के साथ

हर बुरे वक़्त पर नज़र उट्ठी
क्या तअल्लुक है आसमान के साथ

दुश्मनी थी तो कुछ तो हासिल था
छिन गया सारा कुछ अमान के साथ

थे ज़मीं पर तो ठीकठाक था सब
पर बिखरने लगे उड़ान के साथ

एक इंसां ही सो रहा है फ़क़त
कुल जहां उठ गया अजान के साथ

ना सही मानी हर्फ़ ही से सही
एक निस्बत तो है कुरान के साथ
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