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गुड़िया-3 / नीरज दइया

24 bytes added, 00:52, 16 मई 2013
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>जिस गुड़िया से थातुम आई हो प्यार बचपन मेंकिसी अन्य लोक सेवह कितना निष्पाप थाबन कर सुंदर-सी गुडिय़ा
उसे दिनजब भी देखता हूं-रात चूमनाऔर बार-बार गले लगानापाता हूं तुम्हेंकितना बेदाग थामासूम-सी!
अब पाप मेंबचपन जा चुकादाग गिन भी नहीं पाता कहां छुपा सकता हूं तुम्हें -सिवाय मन के!
</poem>
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