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पानी / नीरज दइया

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|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
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{{KKCatKavita‎}}<poem>खुशी मिलने ही वाली थी
वह खड़ी थी सामने बनकर-
एक लड़की!

उससे इजहार किया जा सकता था
अपनी बेबसी का
अपने अरमानों का भी
सब कुछ कहा जा सकता था
मगर खुशी
इतनी पहले कभी नहीं मिली थी
एकदम पागल कर देने वाली
दिल को जोर-जोर से धड़काने वाली
जोश, उत्साह, उमंग में लिपटी खुशी
प्यार में लिपटना चाहती थी।
प्यार था भीतर हमारे
फिर भी हम चाहते थे प्यार।
प्यार की प्यास में भी
मांगते हैं हम पानी!
मैंने भी मांगा
प्यार की जगह
खुशी से सिर्फ- पानी...
पानी!</poem>
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